Thursday 31 October 2013

हमारी कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यकर्म के बारे में विस्तृत जानकरियां --

आदरणीय देशवासिओं ,

हमारी कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यकर्म के बारे में विस्तृत जानकरियां ----
आपकी सुविधा के लिए हम कार्यशाला के बारे में जानकारी दे रहे है ताकि अआप जान सकें कि इस कार्यकर्म का क्या उदेस्शय है और किस प्रकार से पीड़ित लोगों का लाभ होगा ..........???

कार्यकर्म का उदेस्शय ..................

दहेज़ हत्या, दहेज़ प्रताड़ना ,घरेलु हिंसा ,गुजर भत्ता , बलात्कार, छेड़ा-छाड़ि से सम्बंधित कानूनों के दुरूपयोग , हिन्दू विवाह संपत्ति अधिनियम संशोधन (IrBM ) को रोकने के लिए.

कार्यकर्म के बारे में विस्तृत जानकरियां.......

1) कार्यशाला तीन दिन कि होगी ,जिसमे पहले दिन पहुचने के बाद हम पीड़ित लोगों के केस के बारे में बात करेंगे , और उनसे मिलेंगे .
2) दूसरे दिन कार्य शाला होगी जिसमे उन तरीकों के बारे में सिखाया जायेगा कि आप कैसे ,किस समस्या का समाधान कर सकते है ............??? 
3) तीसरे दिन हम लोगों कि जिज्ञासा , प्रशन के सवाल जबाब के बारे में उनको समझायेंगे .
4) कार्यशाला केवल उन जिलो /या शहरों में ही हो सकती है जहाँ पर जिम्मेदारी लेने वाले आयोजक कम से कम 50 पीड़ित लोगों कि उपस्थिति सुनिश्चित करके सूचि हमारे पास भेज देंगे और हमारे टीम को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित के SMS का जवाब मिल जायेगा .
5) इस कार्यशाला का उद्देशय धन कमाना नहीं, बल्कि पीड़ित परिवारों कि मदद करना है . क्यों कि हमारा आय का कोई साधन नहीं है, और हमारे संसाधन सिमित हैं . इसलिए जो भी भाई इस कार्यशाला को आयोजित करेंगे उन्हें हमारे लिए निम्न सुविधाएँ का इंतजाम करना होगा --
-- दो या अधिकतम तीन लोगों का दिल्ली से आने - जाने का टिकट हमें भेजना होगा 
-- उनके लिए सोने कि जगह का इंतजाम 
-- उनके लिए शाकाहारी खाने का इंतजाम ( केवल घर का सादा खाना , होटल का नहीं )
-- एक इंटरनेट व् लैपटॉप का इंतजाम 
इस कार्यशाल से 15 दिन पहले पहले 1000 स्टिकर बनवा कर चिपकने होंगे व् 2000 पर्चे छपवाकर बाटने होंगे . 

कार्यशाला के लाभ --
--जो भी व्यक्ति इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे वो न केवल अपने केस को काबू में कर लेंगे बल्कि आपकी पैसा ,प्रताड़ना भी कम होगी .
--- आप का योगदान न केवल आप के अपने केस में फायदा करेगा , बल्कि आप कि कोशिश देश के लाखों परिवारों को प्रताड़ना से बचाएगी .

---न केवल आप कि कीमती ऊर्जा बर्बाद होने से बचेगी बल्कि आप को नई ऊर्जा मिलेगी क्योंकि आप कि कोशिश मजबूर इंसान को आतम हत्या से रोकेगी 

--- जब आप पेड़ कि जड़ यानि कि मूल कारण, कानून दुरूपयोग पर सजा के लिए उठेंगे तो केस कि संख्या में गिरावट आएगी 

--- केस झूठा पाया जाने पर नुक्सान कि भरपाई कि मांग के प्रावधान से महिला सेल , महिला आयोग , पुलिस , तथाकथित महिला कल्याण संगठन कि गुंडगर्दी पर रोक लगेगी . ये केस दर्ज करने से पहले चार बार सोचेंगी ..................
. आप समस्या के समाधान का हिस्सा बनेंगे , जिससे केसों कि संख्या में गिरावट आयेगी .

नोट -- हमारी आप से विनती है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी आर्थिक मज़बूरी के चलते , इस कार्यशाला का हिसा बनने से वंचित न रहे , ऐसे लोगों से किसी प्रकार का शुल्क न लिया जाये .
. कार्यक्रम के आयोजन का बोझ किसी एक व्यक्ति पर ना डाला जाये , अगर कोई स्वैच्छा से कोई सहयोग करना चाहे तो उनका सहयोग ले सकते हैं .

अगर आप मेरे सुझावों से सहमत है तो जन-२ तक इसे पहुचाएं ..................

Regard's
Manojj Kr. Vishwakarma . 
Social Activist, RTI Activist & Scientist...
Contact-- Manojj 09253323118/ 09910597896 ; Anupam 08447034601 ; Bansal Uncle 09811105587
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Tuesday 29 October 2013

एक चालाक , स्वार्थी बहु के क़ानूनी अधकारों के दुरूपयोग के कारण

आदरणीय देशवासिओं ,

वर्त्तमान में देश में एक चालाक , स्वार्थी बहु के क़ानूनी अधकारों के दुरूपयोग के कारण न केवल पति बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों के जिसमे बुजुर्ग माँ,बाप , बहन , दादा ,दादी ,भुआ ,चाची , ताई, देवर , पति के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है . अगर किसी भी कारण से बहु मर जाये तो उसे दहेज़ हत्या का नाम देकर उस बहु के माता-पिता , लालची सरपंच /प्रधान, उनके भाई आदि, झूठा केस करके निर्दोष परिवारों का जम कर शोषण कर रहे हैं , जो कि बहु को उसके हिस्से कि संपत्ति नहीं देना चाहते और ससुराल कि संपत्ति लूटने के लिए दहेज़ हत्या, दहेज़ प्रताड़ना , गुजर भत्ता, बलात्कार, छेड़ा-छड़ी के झूठे केस दर्ज करवाते हैं. महिला सेल, महिला आयोग, पुलिस व् समाज सब मिलकर उन लोगों को जैल भेज कर सामाजिक, मानसिक, और आर्थिक शोषण करके हालत ठीक उसी प्रकार कर देते हैं जिस प्रकार गन्ने का रस निकलने कि मशीन में गन्ने को रस निकलने बाद छिलका बना दिया जाता है .
समस्यें अनेक है ,जैसे-
1) गुजारा भत्ता कानूनों का दुरूपयोग,
2) कानून दुरूपयोग पर सजा ,
3) बच्चे पर पिता के अधिकार,
4) समानता के अधिकार का हनन ,
5) केस झूठा पाये जाने पर सरकार से नुकसान कि भरपाई ,
6) केवल झूठी शिकायत से आरोपी न माना जाये,
7) जो बात एक इंसान खून भी देकर साबित नहीं कर सकता उन प्रावधानो को हटाना ,
पारिवारिक मामलों के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनवाना आदि

इसलिए समाधान के लिए अलग.-२ धरना/ प्रदर्शन करने पड़ेंगे , घरों से बहार निकलना पड़ेगा . सिर्फ इंटरनेट पर लाइक करने , कमेंट करने से देश नहीं बदलेगा .............!!!!!

10- नवम्बर-2013 के धरने के बाद हम अलग-२ मुद्दों को लेकर धरना/ प्रदर्शन करते रहेंगे . आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं ....

अगर आप मेरे सुझावों से सहमत है तो जन-२ तक इसे पहुचाएं ..................

Regard's
Manojj Kr. Vishwakarma .
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अगर आप समाधान का हिस्सा बनते हैं तो

आदरणीय देशवासिओं ,

अगर आप समाधान का हिस्सा बनते हैं तो ......................

दहेज़ हत्या, दहेज़ प्रताड़ना ,घरेलु हिंसा ,गुजर भत्ता , बलात्कार, छेड़ा-छाड़ि से सम्बंधित कानूनों के दुरूपयोग , हिन्दू विवाह संपत्ति अधिनियम संशोधन (IrBM ) को रोकने के लिए अगर आप समाधान का हिस्सा बनते है तो उसके .क्या -२ फायदे होंगे................???

--- आप का योगदान न केवल आप के अपने केस में फायदा करेगा , बल्कि आप कि कोशिश देश के लाखों परिवारों को प्रताड़ना से बचाएगी .

---न केवल आप कि कीमती ऊर्जा बर्बाद होने से बचेगी बल्कि आप को नई ऊर्जा मिलेगी क्योंकि आप कि कोशिश मजबूर इंसान को आतम हत्या से रोकेगी 

--- जब आप पेड़ कि जड़ यानि कि मूल कारण, कानून दुरूपयोग पर सजा के लिए उठेंगे तो केस कि संख्या में गिरावट आएगी 

--- केस झूठा पाया जाने पर नुक्सान कि भरपाई कि मांग के प्रावधान से महिला सेल , महिला आयोग , पुलिस , तथाकथित महिला कल्याण संगठन कि गुंडगर्दी पर रोक लगेगी . ये केस दर्ज करने से पहले चार बार सोचेंगी .......................
दिल्ली चलो,...... 10 नवम्बर-2013...दिल्ली चलो, IrBM हटाओ,.परिवार बचाओ .. देश बचाओ....

समय -- 11: 00 बजे प्रातः , जंतर- मंतर नई दिल्ली

अगर आप मेरे सुझावों से सहमत है तो जन-२ तक इसे पहुचाएं ..................

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Manojj Kr. Vishwakarma . 
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Monday 28 October 2013

समाज हित मे समाधान का हिस्सा बन्ने कि अपील

समाज हित मे समाधान का हिस्सा बन्ने कि अपील ..........................

आदरणीय देशवासिओं ,

इतिहास गवाह है कि किसी भी चीज को बदलने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ -२ त्याग और समर्पण कि जरुरत होती है . दहेज़ हत्या, दहेज़ प्रताड़ना ,घरेलु हिंसा ,गुजर भत्ता , बलात्कार, छेड़ा-छाड़ि से सम्बंधित कानूनों के दुरूपयोग के कारण परिवार का सामाजिक तन-बना कमजोर हुआ है . युवा जिसकी उम्र कमाने , करिएर बनाने कि है उनकी कीमती ऊर्जा नफरत के कारण बर्बाद हो रही है . बुजुर्ग अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव में घुट-२ कर मरने को मजबूर है . ये भ्रस्ट नेता अपना जमीर बेच चुके हैं . समाज को जाती, फिर धर्म और अब आदमी औरत के नाम पर बाँट कर , फिर नफरत का जहर घोल कर ,वोट बैंक कि रजनीति कर रहे हैं .. जिसमे कुछ फ्रॉड औरतों का सहारा लिया जा रहा है . महिला आयोग, महिला सेल कुछ ऐसी ही औरतों का समूह है जो परिवार द्रोह, समाजद्रोह जैसा घिनोना अपराध कर रही है . औरत फरौड़बाजी करे उसकी कीमत सिर्फ मर्द चुकाए . वो कुछ भी करे सजा मर्द को ही क्यों ................?????
इन कानूनों के दुरूपयोग को रोकने के लिए लोगों को आगे आना पड़ेगा . आपको समाधान का हिस्सा बनना पड़ेगा . जब आप समाधान के लिए कोई कोशिश करते हैं तो कुछ न कुछ अच्छा होता है और वाही आगे चल कर, बदलाव कि नीव रखता है . बदलाव छोटा हो या बड़ा , किसी एक कोशिश से ही आता है . आपसे हमारी विनती है कि आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए जी- जान से जुट जाएँ . आपका किसी भी प्रकार का सहयोग , न केवल आप के केस में ,बल्कि औरों के केस को फायदा देगी , और झूठे केसों को दर्ज करने कि प्रक्रिया पर लगाम लगाएगी . इसलिए आप से तन, मन, और धन से सहयोग कि विनती है . ताकि हम आने वाली पिढीओं को सर उठा के कह सके कि हम भी उस बदलाव का हिस्सा थे .............................

इसलिए समाधान के लिए अलग.-२ धरना/ प्रदर्शन करने पड़ेंगे , घरों से बहार निकलना पड़ेगा . सिर्फ इंटरनेट पर लाइक करने , कमेंट करने से देश नहीं बदलेगा .............!!!!!

10- नवम्बर-2013 के धरने के बाद हम अलग-२ मुद्दों को लेकर धरना/ प्रदर्शन करते रहेंगे . आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं ....

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महान क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ दास

27 अक्टूबर 1904 को कलकत्ता में बंकिम बिहारी दास के घर में जन्मे महान क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ दास गंभीर शान्त और मृदुभाषी स्वभाव के व्यक्ति थे। मितभाषी होने के बावजूद उनके व्यतित्व में ऐसा आकर्षण था कि सभी क्रातिंकारी साथी जल्दी ही उनसे घनिष्ठता बना लेते थे। एक बार यतीन्द्र नाथ दास को नजर बन्द कर दिया गया। उन्हें बंगाल की कई जेलों में रखा गया और तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। जेल अधिकारियों के दर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने तेइस दिन का अनशन भी किया और अंतत: पुलिस अधीक्षक को उनसे माफी मांगनी पड़ी। ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लगातार 63 दिनों तक अनशन के बाद जेल में तेरह सितंबर 1929 को महान क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ दास शहीद हुए, उनके क्रन्तिकारी साथी उन्हें स्नेह से "जतिन दा " ही कहते थे, कहा जाता है कि उनके अंतिम संस्कार में लगभग दस लाख लोग शामिल हुए थे और उनकी चिता की राख से "तिलक" करने की होड़ के कारण जहां उनकी चिता जलाई गयी थी वह स्थान एक गड्ढे में परिवर्तित हो गया था. उनकी शहादत क्रांति की एक मशाल बनकर उठी जिसने सारे देश में बगावत की रोशनी फैला दी। क्या कोई जानता है कि, अमर बलिदानी "जतिन दा" के परिजन आज कहाँ और किस हाल में हैं.? ये सवाल उन ठगों-बहुरूपियों के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ की तरह है जो अपने बाप दादों द्वारा काटी गयी कुछ महीनों-सालों तक "A" श्रेणी जेल की सज़ा की कीमत पिछले 65 सालों से इस देश का हुक्मरान बनकर वसूल रहे हैं. अंग्रेजी हुकूमत से अपनी बात मनवाने के लिए 13 जुलाई 1929 को भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त तथा उनके साथियों ने भूख हड़ताल कर दी। इस अवसर पर यतीन्द्र नाथ दास ने कहा था कि ”हड़ताल का ऐलान करके हम लोग एक लम्बे संघर्ष में उतर रहे है, जो एक मायने में कठिन है। अनशन पर तिल-तिल कर इंच-इंच मौत की ओर सरकने की अपेक्षा पुलिस की गोली का शिकार होकर या फांसी पर झूलकर मर जाना आसान है पर एक बार अनशन के मैदान में उतर कर पीछे हटना क्रातिकारियों की प्रतिष्ठा को नीचे गिराना है।” यतीन्द्र ने यह भी कहा था कि ”जहां तक उनका सवाल है एक बार अनशन आरम्भ होने पर वह उस समय तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक सरकार क्रातिकारियों की मागें स्वीकार नहीं कर लेती। अनशन के दौरान बीमार पड़ने पर भी कोई भी मुंह से किसी प्रकार की दवाइयां आदि नहीं लेगा और कोई भी क्रातिंकारी शरीर में शक्ति रहते बलपूर्वक दूध पिलाने के अधिकारियों के प्रयासों का विरोध करता रहेगा।” उन दिनों अनशन तोड़ने के लिए जेल अधिकारी अच्छा सुगन्धित खाना बनवा कर रखते थे। लेकिन अन्य अनशनकारी जहां भोजन को बाहर फेंक दिया करते थे, वहीं यतीन्द्र नाथ में इतना आत्म संयम था कि वह भोजन को छूते तक नहीं थे न बाहर फेंकते थे, और न खाते थे। उनकी कोठरी से जेलकर्मी रोज पूरा भोजन वापस ले जाते थे। अनशन तुड़वाने के लिए 26 जुलाई 1929 को अन्य साथियों से फुर्सत पाने के बाद जवानों ने यतीन्द्र को पूरी तरह काबू कर लिया और उनकी नाक में नली डाली। यतीन्द्र ने उसे मुंह से निकाल कर दांतों से दबा लिया। डॉक्टर ने दूसरी नली उसकी दूसरे नथुने में डालनी आरम्भ की। यतीन्द्र का दम घुटने लगा, फिर भी मुंह खोले बगैर वह दूसरी नली को भी पेट में जाने से रोकने का प्रयास करते रहे। दूसरी नली पेट में न जाकर उनके फेफड़ों में चली गई। डॉक्टर जल्दी में था वह अपनी विजय को हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। दम घुटने से यतीन्द्र की आंख उलट चुकी थी। लेकिन चेहरे को देखे बिना डॉक्टर ने लगभग एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया और विजयोल्लास में उन्हें छटपटाता छोड़कर चला गया। अनशन के 63वें दिन उनकी हालत खराब देखकर डॉक्टरों ने उन्हें इजेंक्शन लगाना चाहा। उनका अनुमान था कि अचेतन अवस्था में यतीन्द्र को शायद पता न चल पाएगा कि उन्हें इंजेक्शन लगाया जा रहा है। लेकिन यतीन्द्र ने उन्हें मना कर दिया और कुछ देर बाद उन्होंने सदा-सदा के लिए आखें बन्द कर ली। दोस्तों की संगति में और राष्ट्रीय तराने की धुन के बीच यतीन्द्र ने दम तोड़ दिया। उनकी शहादत क्रांति की एक मशाल बनकर उठी। जिससे सारे देश में बगावत की रोशनी फैला दी। माँ भारती के इस अजर-अमर विलक्षण बलिदानी सपूत को कोटि-कोटि प्रणाम...!!!
आम जनता की गाड़ी कमाई से आये टैक्स को, ये हरामखोर सरकारी अफसर एसे खर्च कर रहे है एवं आपनी जेबे भर रहे है जनता देखे की हमारी सरकार क्या हर रही है
Like · 

Male Suicide in India...............

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Congress kuch to bole es par.

Congress kuch to bole es par.

Media Richness Source.................?????????????????????????

नेताओ के बाद देश का सबसे बड़ा धनी आज का मीडिया है तीसरे नम्बर पर नौकरशाह और ठेकेदार इसके बाद लिपिकवर्ग और अंतिम में व्यापारी दीपक चौरसिया ही नहीं सभी मीडिया कर्मिओ की की सी.बी.आई. जाच हो... --------------------------------------- 5000 Rs. की नौकरी करने वाला दीपक चौरसिया 500 करोड़ का मालिक कैसे बन गया ------ कल इसी के प्रोग्राम मे चक्रपाणी महाराज ने जब इस दीपक चौरसिया से ये सवाल पूछा कि आप 500 करोड़ के मालिक इतने कम समय मे कैसे बन गए तो इस चौरसिया की हवाईयाँ उड़ गयी और इसका मुह देखने लायक था। फिर इसने टॉपिक बदल दिया और अपने सीनियर जसवंत को बुला दिया बहस करने के लिए। मित्रों, ये दीपक चौरसिया सबसे बड़ा दलाल है, लेकिन अफसोस इन मीडिया वालों के खिलाफ बोलने वाला कोई नहीं है कि आखिर ये मीडिया वाले रातों-रात करोड़ों-अरबों के मालिक कैसे बन गए। अगर कोई इनके खिलाफ बोलता भी है तो उनकी बात को जनता के सामने रखेगा कौन?? मीडिया तो अपने खिलाफ बोलने वाले लोगों के बारे मे कभी दिखाएगा नहीं और सबसे बड़ी बात ये है की लोग भी इन मीडिया वालों की बातों मे आ जाते हैं, जो ये दिखाते हैं उसको ही पूर्ण सच मान लेते हैं। लोगों को अब इन पेड मीडिया की असलियत बाटनी होगी और ये काम सोशल मीडिया भी बहुत अच्छी तरह से कर रहा है। तभी तो ये सभी सेकुलर मीडिया वाले आजकल बौखलाए हुए हैं। आखिर इसकी भी जांच होनी चाहिए की इनको पैसा कहाँ से मिलता है, इनकी किस कंपनी से डील हुई है और किस आधार पर हुई है। दरअसल ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया एक स्वतंत्र संस्था है इसलिए इसके ऊपर किसी का कंट्रोल नहीं है तो ये अपने मन-मर्जी के हिसाब से कुछ भी दिखाते रहते हैं और लोगों को भ्रमित करते रहते हैं। आखिर इनकी जांच तो होनी ही चाहिए कि ये रातों-रात करोड़ो-अरबों के मालिक कैसे बन गए। ये दूसरों के खिलाफ तो खूब भौंकते हैं लेकिन जब इनके ऊपर सवाल उठते हैं तो ये उस खबर को दबा देते हैं। इसका कोई समाधान तो निकालना ही होगा... — with Ruchi Saxena and 46 others.

The Difference !

What is that keeps the country down ?

What is that keeps the country down ? : @[171464092977566:274:Swaminathan Gurumurthy] -------------------------------------------------------- "What is it that keeps the country down", asked the speaker. A young man in the audience replied unhesitatingly: "Undoubtedly the institution of caste that kept the majority low castes and the society backward" and added "it continues". The speaker replied, "May be". But, pausing for a moment, he added, "May not be". Shocked, the young man angrily asked him to explain his "may-not-be" theory. The speaker calmly mentioned just one fact that clinched the debate. He said, "Before the British rule in India, over two-thirds - yes, two-thirds - of the Indian kings belonged to what is today known as the Other Backward Castes (OBCs). "It is the British," he said, "who robbed the OBCs - the ruling class running all socio-economic institutions - of their power, wealth and status." So it was not the upper caste which usurped the OBCs of their due position in the society? The speaker’s assertion that it was not so was founded on his study - unbelievably painstaking study for years and decades in the archives in India, England and Germany. He could not be maligned as a ‘saffron’ ideologue and what he said could not be dismissed thus. He was Dharampal, a Gandhian in ceaseless search of truth like his preceptor Gandhi himself was, but a Gandhian with a difference. He ran no ashram on state aid to do ‘Gandhigiri’. Admitting that "he and those like him do not know much about our own society", the young man who questioned Dharampal - Banwari is his name - became his student. By meticulous research of the British sources over decades, Dharampal demolished the myth that India was backward educationally or economically when the British entered. Citing the Christian missionary William Adam’s report on indigenous education in Bengal and Bihar in 1835 and 1838, Dharampal established that at that time there were 100,000 schools in Bengal, one school for about 500 boys; that the indigenous medical system that included inoculation against small-pox. He also proved by reference to other materials that Adam’s record was ‘no legend’. He relied on Sir Thomas Munroe’s report to the Governor at about the same time to prove similar statistics about schools in Madras. He also found that the education system in the Punjab during the Maharaja Ranjit Singh’s rule was equally extensive. He estimated that the literary rate in India before the British was higher than that in England. Citing British public records he established, on the contrary, that ‘British had no tradition of education or scholarship or philosophy from 16th to early 18th century, despite Shakespeare, Bacon, Milton, Newton, etc’. Till then education and scholarship in the UK was limited to select elite. He cited Alexander Walker’s Note on Indian education to assert that it was the monitorial system of education borrowed from India that helped Britain to improve, in later years, school attendance which was just 40, 000, yes just that, in 1792. He then compared the educated people’s levels in India and England around 1800. The population of Madras Presidency then was 125 lakhs and that of England in 1811 was 95 lakhs. Dharampal found that during 1822-25 the number of those in ordinary schools in Madras Presidency was around 1.5 lakhs and this was after great decay under a century of British intervention. As against this, the number attending schools in England was half - yes just half - of Madras Presidency’s, namely a mere 75,000. And here to with more than half of it attending only Sunday schools for 2-3 hours! Dharampal also established that in Britain ‘elementary system of education at people’s level remained unknown commodity’ till about 1800! Again he exploded the popularly held belief that most of those attending schools must have belonged to the upper castes particularly Brahmins and, again with reference to the British records, proved that the truth was the other way round. During 1822-25 the share of the Brahmin students in the indigenous schools in Tamil-speaking areas accounted for 13 per cent in South Arcot to some 23 per cent in Madras while the backward castes accounted for 70 per cent in Salem and Tirunelveli and 84 per cent in South Arcot. The situation was almost similar in Malayalam, Oriya and Kannada-speaking areas, with the backward castes dominating the schools in absolute numbers. Only in the Telugu-speaking areas the share of the Brahmins was higher and varied from 24 to 46 per cent. Dharampal’s work proved Mahatma Gandhi’s statement at Chatham House in London on October 20, 1931 that "India today is more illiterate than it was fifty or hundred years ago" completely right. Not many know of Dharampal or of his work because they have still not heard of the Indian past he had discovered. After, long after, Dharampal had established that pre-British India was not backward a Harvard University Research in the year 2005 (India’s Deindustrialisation in the 18th and 19th Centuries by David Clingingsmith and Jeffrey G Williamson) among others affirmed that "while India produced about 25 percent of world industrial output in 1750, this figure had fallen to only 2 percent by 1900." The Harvard University Economic Research also established that the Industrial employment in India also declined from about 30 to 8.5 per cent between 1809-13 and 1900, thus turning the Indian society backward. PS: This great warrior who established the truth - the truth that was least known - that India was not backward when the British came, but became backward only after they came, is no more. He passed away two weeks ago on October 26, 2006, at Sevagram at Warda. ------------------------------------ "De-Colonize the Indian Mind"

We need to Learn Discipline, while Visiting Holy Places

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